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अध्याय २ - रीति-काव्य सर्व प्रथम शिवराम को ही लीजिए।' इनकी जो एक हो पुस्तक उपलब्ध हुई है उसी के आधार पर इनको कविश्रेष्ठ कहने में संकोच नहीं हो सकता । उस युग में इनको उस पुस्तक पर ३६,००० रु० पुरस्कार रूप में आदरपूर्वक दिया गया था। पुस्तक के अंत में लिखा है
जबहि ग्रंथ पूरन भयौ, तबहि करी बकसीस ।
षरें रुपैया मांन सौं, दए सहस छहतीस ॥ इस पुरस्कृत पुस्तक का नाम कवि ने 'नवधा भक्ति' लिखा है। रचयिता का नाम 'शिव सुवंस शिवराम कविराज' लिखा गया है। पुस्तक का पूरा नाम 'नवधा भक्ति रागरस सार' है । पुस्तक समाप्त होने की तिथि कवि ने निम्न प्रकार लिखी है।
दंपति रस मुनि ससिहि धर, फागुन शुदि रविवार ।
तिथि पूरन पूरन भयौ, भक्ति राग रस सार ।। सूरजमल का राज्यकाल सं० १८१२ से १८२० वि० है, अतएव इस ग्रथ की रचना उनके युवराज काल में ही हुई । इस पुस्तक में ५ खंड हैं :
१. प्रथम खंड- कवि तथा राजा के कुल का वर्णन आदि । २. द्वितीय खंड- सूरजमल कौ नगर बंस सभा वर्णन । ३ तृतीय खंड- पुस्तक के दो पत्र नहीं हैं, विषय संदिग्ध है। ४. चतुर्थ खंड- प्रेम लक्षना । ५. पंचम खड- गुन अस्त्र-शस्त्र वर्णन । २
इस हस्तलिखित पुस्तक में 'श' और 'ण' शद्ध रूप में लिखे गए हैं-'स' और 'न' के रूप में नहीं । स्थान-स्थान पर संस्कृतगभित भाषा मिलती है जो कवि की ज्ञानगरिमा और भाषाशुद्धि का उदाहरण है। प्रथम छप्पय ही देखिये
गवरिनंद जूतचंद सकल पानंद कंदवर। एकदंत सोभंत भाल चंदन विशालधर ॥ विघ्न हरन दुखकटन धरन गज बदन प्रचंडन ।
जगवंदन बुधिसदन हर्ष शिवकुल जश मंडन ॥ शिवराम फबित फरसा सुकवि, कर त्रिशूल गणपति धरहि । श्री सुजान ग्रह दिन रयन, पलु पलु पलु रक्षा करहि ॥
१ कविराज शिवराम महाराज सूरजमल के पास उनके युवराज काल से ही रहते थे। उनके
ग्रंथ 'नवधा भक्ति रागरस सार' में 'श्री मन्महाराज कुमार श्री सूरजमल' लिखा है। २ इस में अनेक राग-रागिनियों के रूप का वर्णन है-जैसे 'राग बिलावल को रूप।
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