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अध्याय २ --- रीति - काव्य
गोविंद कवि वृन्दावन में गुरु-चरणों में बैठ कर राधाकृष्ण के पदों को वंदना करते हुए काव्य के विभिन्न अंगों का निरूपण करते थे। इनके ग्रंथों का मत्स्य प्रदेश में बहुत प्रचार था । हमारो खोज में राजभवन पुस्तकालयों में 'गोविंदानंदघन' की कई प्रतियाँ प्राप्त हुई। ब्रिटेन के पुस्तकालयों में भी एक प्रति देखी थी। राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान के पुस्तकालय में एक प्रति है। इनके गुरुद्वारे वृदावन में तो इनके ग्रंथों की कई-एक प्रतियाँ संग्रह रूप से विद्यमान हैं। इनके अन्य ग्रथों के नाम हैं
(१) युगल रसमाधुरी, (२) रामायण सूचनिका, (३) कलियुगरानौ, (४) लछिमनचंद्रिका, (५) समय प्रबंध, (६) अष्टदेश, (७) पिंगल ग्रंथ, (८) रसिक गोविंद आदि । 'गोविंदानवधन' में काव्य के विविध अङ्गों की व्याख्या बड़े स्पष्ट रूप में को गई है।
उदाहरण के रूप में स्वरचित छंद ही नहीं, अन्य कजियों के छंद भी दिए गए हैं। मीमांसा को अधिक स्पष्ट करने के लिए गद्य का भी उपयोग किया है और कहीं कहीं तो प्रश्नोत्तर के रूप में विवेचन बहुत ही साफ हो जाता है । विषय-प्रतिपादन में अनेक प्रामाणिक ग्रन्थों का उल्लेख किया है। ‘रस-निरू
(१० ३६ की टिप्पणी का शेष अंश ) इनका नाटानी गोत्र है जो जयपुर में खण्डेलवालों के अतिरिक्त और कहीं नहीं मिलता। और निश्चय रूप से कवि का जन्म जयपुर में हुआ था।
जयपुर जनम जुगल पद सेवी, नित्य विहार गवैया ।
श्री हरिव्यास प्रसाद पाय भौ वृन्दा विपिन वसैया ।। इस संबंध में पुस्तक का रचना काल भी कुछ संकेत देता है ---
वसु सर वसु ससि अब्द १८५८
रवि दिन पंचमी बसंत । अाज भी बसंत पंचमी को खण्डेलवाल वैश्य बहुत महत्त्वपूर्ण मानते हैं। बरेली, आगरा, भरतपुर, अलवर, जयपुर, खण्डेला, दौसा आदि स्थानों में, जहां खण्डेलवालों की संख्या अधिक है, यह दिन उत्सव के रूप में मनाया जाता है। जयपुर में तो इस दिन गंगामहारानी के मन्दिर में विशेष उत्सव होता है। वहां का सारा कार्य बसंत से ही प्रारम्भ होता है। यहां के खण्डेलवाल वैश्यों की प्रसिद्ध संस्था हितकारिणी' का वार्षिक अधिवेशन, नव पदाधिकारियों का निर्वाचन आदि कार्य इसी दिन होते हैं । अतएव नाटानी गोत्र में उत्पन्न खण्डेलवाल वैश्य गोविंद कवि ने इसी शभ दिन में अपने भतीजे श्री नारायण के लिए यह सुन्दर पुस्तक लिख कर प्रदान की।
बेटा बाल मुकंद को श्री नारायण नाम । रच्यौ तासु हित ग्रंय यह.............॥
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