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अध्याय २ -- रीति - काव्य २. कलानिधि - राजकुमार प्रतापसिंह (वैर निवासी), ३. शिवराम - महाराज सूरजमल (डीग निवासी), ४. जुगल कवि - महाराज बल्देवसिंह, ५. कृष्ण कवि -~- रा० गोविंदसिंह, ६. हरिनाथ - महाराज विनयसिंह, ७. राम कति --- महाराज बलवंतसिंह, ८. मोतीराम --- ६. बलभद्र - महाराज महीसिंह, १०. भोगीलाल - महाराज बख्तावरसिंह, और
११. रसानन्द -- महाराज बलवंतसिंह । इन राज्याश्रित कवियों का कार्य अपने राज-कवि होने को सार्थकता प्रदान करना था। इन लोगों ने इस बात का निरंतर प्रयास किया कि अपने समय और अवसर का पूरा-पूरा उपयोग करें। इनके द्वारा लिखे गए कुछ ग्रन्थ तो वास्तव में उच्च कोटि के हैं । ग्रंथों को देखने से ऐसा पता लगता है कि ये ग्रंथ
१. या तो राजाओं के मनोविनोदार्थ लिखे गए अथवा राजपुत्रों के शिक्षण हेतु क्योंकि उस समय यह प्रणाली थी कि राजपुत्रों की शिक्षा के हेतु नवीन ग्रंथों का निर्माण होता था। 'अकलनामा' नाम के ग्रंथ कुछ इसी विचार से लिखे जाते थे।
२. एक कारण काव्य-निरूपण भी हो सकता है। कुछ लोग ऐसे थे जिन्हें राजानों को प्रसन्न करने की तनिक भी चिंता न थी। प्रत्यत जो चाहते थे कि उनके द्वारा काव्यांगों का विधिवत् निरूपण हो। इस प्रसंग में हम गोविंद कवि' का नाम ले सकते हैं । गोबिंद कवि किसी राजा के याश्रित नहीं थे।
१ इस कवि का नाम 'रसिक गोविन्द' और इनकी पुस्तक का नाम 'रसिक गोविन्दानंदघन' लिखा है। यह बात भ्रमात्मक है। मेरी खोज में इस कवि द्वारा लिखित 'गोविन्दानन्द. घन' की कई हस्तलिखित प्रतियाँ प्राप्त हुई जिनमें पुस्तक का नाम स्पष्ट रूप से 'गुविंदानन्दघन' लिखा हना है, 'रसिक गविदानन्दघन' नहीं। पंडित रामचन्द्र शक्ल, प्राचार्य चतुरसेन शास्त्री, डाक्टर नगेन्द्र आदि ने भी 'रसिक' ही लिखा है। मेरे कथन के प्रमाण में दो-तीन पंक्तियाँ देखिए
रच्यो गुविंदानन्द घन वृन्दावन रसवंत । यहै गुविंदानन्द घन नाम धरयो इहि हेत ।। रच्यौ गुविन्दानन्दघन रसिक गुर्विद विचारि ।
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