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मत्स्य प्रदेश की हिन्दी साहित्य को देन
परण' प्रकरण देखिए
अथ रस - निरूपणं अन्य ज्ञान रहित जो आनंद सो रस ।
प्रश्न - अन्य ज्ञानरहित यानंद तो निद्रा हू है ।
उत्तर- निद्रा जड़ है, यह चैतन्य है
भरत प्राचारज सूत्रकार को मत-विभाव अनुभाव संचारी भाव के संजोग प्रगट होय सो रस मिलाइए 'विभावानुभाव व्यभिचारि संयोगाद्रस निष्पतिः,
कौं
अथ काव्यप्रकास को मत - कारण कारज सहायक हैं जे लोक में इन ही नाट्य में काव्य में विभाव अनुभाव संचारी भाव संज्ञा है । प्रगट होइ जो स्थायी भाव सो रस ।
इनके संयोग तैं
अथ साहित्य-दर्पन कौ मत
सोरठा - सत्व विसुद्ध अभंग स्व प्रकास प्रानंद चित । अन्य ज्ञान नहि संग ब्रह्मा स्वाद सहोदरसु || मिलाइए - सत्वोद्रेकादखण्डस्त्र प्रकाशानन्द चिन्मय | वेद्यान्तर स्पर्शशून्यो ब्रह्मा स्वाद सहोदरः ॥
साहित्यदर्पण - तृतीय परिच्छेद २
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अथ अभिनवगुप्त पादाचर्ज को तत्व लक्षण
रसिकनि केचित्त में प्रमुदादि कारण रूप करिकें ॥ वासना रूप करिकै स्थिति || नाट्य के काव्य के विषै बिभाव अनुभाव संचारी भाव साधारण ता करिकै प्रसिद्ध | अलोकिक ।। से निकरि के प्रगट कीनों हुवौ । मेरे शत्रु के उदासीन के मेरे नहीं सत्रु के नहीं उदासीन के नहीं । या ही तैं साधारण । जहां स्वीकार परिहार नहीं सो साधारण । साधारण उपाय बलि करि कैं ततछिन उतपत्ति भयौ । आनन्द स्वरूप | विषयांतर रहित । स्वप्रकास अपमित जो भाव । स्व स्वरूप की सी नांही । न्यारो नही तो हू जीव नै विषय कोनी हुवौ । विभावादिक की स्थिति जा को जीवित आनंद वृत्ति जाके प्राण । प्रयान कर सा न्याय करि के अनुभव कोनै हुवौ अगारी फुरत सौ । हृदय में धरत सौ । अंगिन कौ प्रालिंगति सौ । और ज्ञान को छिपावत सौ परब्रह्म स्वाद की तजावत सौ । अलौकिक चमत्कार करें जो रत्यादि स्थाई भाव सो रस ।
सौ नव विधि
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प्रश्न- सांति कछ कैसे I
उत्तर - सांति काव्य में कहियत नाट्य में नाहीं याते ।
कवि बल्देव खंडेलवाल ने भी अपना ग्रंथ "विचित्र रामायण" बसंत पंचमी को ही समाप्त किया था— त्रय नम नव ससि समय में माघ पंचमी हेत ।
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