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मत्स्य प्रदेश की हिन्दी साहित्य को देन नायिका के भेदों की संख्या करोड़ों तक पहुँचा दी गई ।' नख-सिख अथवा सिख-नख में नायक-नायिकानों का वर्णन भी कवियों के किसी शृंगारिक झुकाव के कारण था । हम इन प्रसंगों को भी रीति-काव्य के अंतर्गत ले रहे हैं क्योंकि इनका अाधार किन्हीं लक्षणों पर होता है और उनके वर्णन की प्रणाली एक तरह से निश्चित सी बन गई थी। नायक-नायिका भेदों का निरूपण संस्कृत ग्रंथों में भी हुा। जिस पद्धति का प्रारम्भ धनंजय', विश्वनाथ द्वारा हुआ, उसकी बहुत-कुछ रूप-रेखा हमें रुद्रभट्ट और भोज' के ग्रन्थों में मिलती है । हिन्दी में भी कृपाराम, मतिराम, देव, पद्माकर आदि ने इस ओर ध्यान दिया । इस प्रकार के कई ग्रन्थ हमें अपने अनुसंधान म प्राप्त हुए और वे उसी कोटि के हैं जैसे हिन्दी के अन्य ग्रंथ । इन ग्रन्थों में अन्वेषण की क्षमता और वर्णन को विशदता बहुत सुंदर रूप में उपलब्ध होती है।
६. मत्स्य प्रदेश के रोति-ग्रंथों में हमें राधाकृष्ण का इतना अवर शृंगारी रूप नहीं मिलता जितना हिन्दी के अन्य ग्रंथों में। यह उस प्रदेश का काव्य है जहां राधा और कृष्ण की ओर पूज्य भाव अधिक है, अतएव इस प्रकार का प्रसंग समाज को और विशेषतः आश्रयदाताओं को रुचिकर नहीं होता । मत्स्य के कवियों ने इस मनोवृत्ति का पूरा ध्यान रखा ।
रीतिकालीन कवि प्रायः राज्याश्रित थे। चिंतामरिण नागपुर में मकरंदशाह के यहाँ रहे, बिहारी मिर्जा राजा जयसिंह के यहाँ थे, और मडन राजा मंगदसिंह के दरबार में रहते थे। इसी प्रकार मतिराम बूंदी के महाराजा का प्राश्रय पाते थे और भूषण शिवाजी तथा छत्रसाल के प्रशंसक थे । नेवाज कवि पन्ना नरेश के पाश्रित थे और देव के तो अनेक प्राश्रयदाता थे। भिखारीदास प्रतापगढ़ के सोमवंशी राजाओं के पास रहते थे। इस प्रकार अनेक कवियों ने अपने-अपने आश्रयदाता ढूंढ रखे थे । मत्स्य प्रदेश के अनेक कवि भी राज्याश्रित थे, यथा
१. सोमनाथ - राजकुमार प्रतापसिंह (वैर निवासी),
१ जसवंतसिंह के 'भाषा-भूषण' पर महाराज विनय सिंह की टीका, नायका भेद-१३२७१२४० । २ दशरूपक । 3 साहित्यदर्पण। ४ श्रृंगारतिलक। ५ श्रृंगार-प्रकाश। ६ कहा जाता है ये महाशय आश्रयदाता की खोज में भरतपुर भी पाए थे।
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