________________
मत्स्य प्रदेश की हिन्दी साहित्य को देन
और इनसे सम्बन्धित "विजयपाल रासो" नाम से एक सुन्दर वीरकाव्य को रचना नल्लसिंह द्वारा को गई। इस पुस्तक को तथाकथित प्रामाणिक एक हस्तलिखित प्रति करौली के मन्दिर में है जिसके दर्शन किये जा सकते हैं। इनका समय बहुत पुराना है और ये वीरगाथा काल के कवियों में गिने जाते हैं। इनके काव्य के सम्बन्ध में अनेक संदिग्ध बातें हैं और साथ ही इस हस्तलिखित प्रति के सम्बन्ध में भी। वैसे कुछ लोग तो इस प्रति को नल्ल के समय का ही लिखा हुप्रा मानते हैं।
(३) करमाबाई-यह वही प्रसिद्ध करमाबाई हैं जिनकी खिचडो का भोग जगदीश में अब भी लगता है। इनकी समाधि, अरावली पर्वत की तलहटी में, गढ़ी मामोड़ पर है ! यह स्थान अलवर के अन्तर्गत आता है। इनको साहित्यिक कृतियाँ उपलब्ध नहीं होती किन्तु इनके कवि होने की प्रसिद्धि अवश्य है । भक्तभाल में करमाबाई का उल्लेख इस प्रकार है--
हुती एक बाई ताको 'करमा' सुनाम जानि, बिना रीति भांति भोग खिचरी लगावही । जगन्नाथ देव आप भोजन करत नीके, जिते लगें भोग तामें यह अति भाव ही। गयो ताहं साधु, मानि बड़ो अपराध करै, भरै बहु सांस सदाचार ले सिखाव ही। भइयों अवार देखें खोलि के किवार,
जो पै जूठनि लगी है मुख धोए बिनु प्राव ही। (४) जोधराज-ये अत्रि गोत्रीय प्रादि-गौड़ ब्राह्मण थे। डाक्टर ग्रियर्सन का कहना है कि वह १४२० ई० में पैदा हुए। कहा जाता है ये निमराना (अलवर) के महाराज चन्द्रभान के आश्रित थे। इन्हीं की आज्ञा से 'हम्मीर रासो' एक प्रसिद्ध वीर-काव्य की रचना हुई ।' शुक्लजी तथा बा० श्यामसुन्दरदास ने इनके काव्य की प्रशंसा की है। मिश्रबन्धु इन्हें तोषकवि की श्रेणी में रखते हैं । डाक्टर ग्रियर्सन के समय को न मानते हुए खवा (जयपुर) के कुमार ने जो डा० दास को पत्र लिखा उसमें जोधराज को १८ वीं शताब्दी वि० का माना है। इनकी रचनाएँ गद्य में भी मिलती हैं। हम्मीररासो वीर और शृंगार दोनों की सफल रचनाओं का उदाहरण है। इसी प्रणाली पर बहुतस मय बाद अलवर के राजकवि चन्द्रशेखर
१ का० ना० प्र० सभा द्वारा प्रकाशित हो चुका है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org