________________
३७
नामचतुष्टयाध्याये प्रथमो पातुपादः गमशब्दो रूढो वा । स्वराणां मध्ये योऽन्त्यः स्वरः इत्यादि पत्री, अन्यथा यदि कियदपेक्षयाऽन्त्यस्वरत्वं गृह्येतेत्यर्थः । एतच्चान्त्यग्रहणादेव लभ्यत इति । एतदेव कथन्न भवति चकारात् समुदायापेक्षया वेति चेद् अन्त्यग्रहणादेव लभ्यते । न च वक्तव्यम् - भयानीत्यत्रान्तग्रहणस्य व्यावृत्तिर्भविष्यतीति अन्त्यग्रहणसत्त्वेऽपि व्यपदेशिवद्भावेन प्राप्तत्वात् । अन्यथेति । यदि तु समुदायापेक्षयाऽन्त्यत्वं गृह्यते तदा 'येन विधिस्तदन्तस्य' (कात० प० ३) इति सिद्धमेव किमन्त्यग्रहणेनेति भावः । तदा पद्मानीत्यादावेव स्यात्, न तु पयांसीत्यादाविति शेषः ।। ८५ ।
[समीक्षा]
(१) पाणिनि ने जो नुम् आदि मित् आगम किए हैं और उनके लिए परिभाषासूत्र बनाया है - "मिदचोऽन्त्यात् परः" (अ० १।१।४७), कातन्त्र में ऐसे ही आगम उकारानुबन्ध वाले किए गए हैं - 'नु, मु' आदि । फलतः इन आगमों की व्यवस्था के लिए प्रकृत सूत्र बनाया गया है, जिसके अनुसार उदनुबन्ध आगम अन्तिम स्वर के बाद होते हैं।
(२) आगम उसे कहते हैं जो प्रकृति-प्रत्यय का उपघात किए विना ही प्रवृत्त होता है - "प्रकृतिप्रत्यययोरनुपघाती आगमः"। ___ (३) टीकाकार ने आगम-परिभाषा शब्दों की व्युत्पत्ति भी की हैआगच्छतीत्यागमः। परितः सर्वतो भाष्यते इति परिभाषा।
(४) आपिशलि आचार्य के मतानुसार आगम-विकार-आदेश तथा लोप की परिभाषा एक श्लोक में इस प्रकार की गई है -
आगमोऽनुपघातेन विकारश्चोपमर्दनात् ।
आदेशस्तु प्रसङ्गेन लोपः सर्वापकर्षणात् ॥ (वि० प०)। [रूपसिद्धिः]
१. पद्मानि। पद्म + जस् । “जस्शसौ" (२।१।४) से जस् की घुट् संज्ञा, "जस्शसोः शिः" (२।२।१०) से जस् को शि-आदेश, प्रकृत सूत्र के नियमानुसार 'पद्म' शब्दान्तर्गत मकारोत्तरवर्ती अन्तिम स्वर के पश्चात् “धुट्स्वराद् घुटि नुः" (२।२।११) से 'नु' आगम तथा "घुटि चासंबुद्धौ" (२।२।१७) से मकारोत्तरवर्ती ह्रस्व अकार को दीर्घ आदेश ।