Book Title: Katantra Vyakaranam Part 02 Khand 01
Author(s): Jankiprasad Dwivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
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५४६
२४२
३२४,३२५
३२४
१९५
३२४
سد
३२५
१९५
४०८,४१४
४१४
४३३
कातन्वयाकरणम् ४७५/६१३. सुस्रोताः २१८ ६१४. स्त्रियः ४८९ ६१५. स्त्रियम्
|६१६. स्त्रियै |६१७. स्त्रियौ ६१८. स्त्रीः ६१९. स्त्रीणाम् ६२०. स्यः ६२१. स्यकः ६२२. स्वद्भ्याम् ६२३. स्वनडुत् ६२४. स्वनडुद्भ्याम् ६२५. स्वर्यमाणि ६२६. स्वसारौ ६२७. स्वाम्पि तडागानि ६२८. स्रस्यते
६२९. हे अक्क! ,४८९
६३०. हे अग्ने! ४३६/६३१. हे अनड्वन् ।
| ६३२. हे अम्ब! २०६/६३३. हे ऋभुक्षाः! २१८१६३४. हे कर्तः!
५९२. सुकन्भ्याम् ५९३. सुकर्तृणि ५९४. सुचतुः ५९५. सुदण्डीनि ५९६. सुधु ५९७. सुधिय : ५९८. सुधियौ ५९९. सुपथि ६००. सुपदः ६०१. सुपुम् ६०२. सुपूषाणि ६०३. सुविट् ६०४. सुविट्वरः ६०५. सुविड्भ्याम् ६०६. सुवाक् ६०७. सुवाग् ६०८. सुविद्वत् ६०९. सुविद्वद्भ्याम् ६१०. सुवृत्रहाणि ६११. सुसखि ६१२. सुसखीनि
४३६
४३६
२४५
१६९
४४५
२४०
११७
४३६,४
१४३,१७४
२८५
११६
२७०
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