Book Title: Katantra Vyakaranam Part 02 Khand 01
Author(s): Jankiprasad Dwivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay

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Page 581
________________ कातन्त्रव्याकरणम् २७६ ३०४ ३०४ ३०४ ४४२ ५०८. विधप् ५०९. विधब् ५१०. विश्वकः ५११. विश्वस्मात् ५१२. विश्वस्मिन् ५१३. विश्वस्मै ५१४. विश्वे ५१५. विश्वेषाम् ५१६. वृत्रमः ५१७. वृत्रघ्ना ५१८. वृत्रहा ५१९. वृक्षः ५२०. वृक्षकः ५२१. वृक्षम् ५२२. वृक्षयोः ५२३. वृक्षस्य २९४ २९४ ४८३ ५२९. वृक्षेभ्यः ४८३ ५३०. वृक्षैः ३३४ ५३१. वैदुषम् ८९ ५३२. वैदुष्यम् ९० ५३३. वैयाघ्रपद्यम् ८८|५३४. व्याघ्रपदः ९७५३५. व्याघ्रपदा ९४/५३६. शब्दप्राट् २६४ ५३७. शुनः २६४/५३८. शुना २४५/५३९. शुनी ४८५ ५४०. श्रद्धा ३३४/५४१. श्रद्धानाम् ६५/५४२. श्रद्धायाः ७२ ५४३. श्रद्धायाम् ७६ | ५४४. श्रद्धायै ४०,५८,१७६ ५४५. श्रद्धे ७५, ५४६. श्रियाम् ६२ ५४७. श्रिये ५८,७९ ५४८. श्रियै ७८ ५४९. श्रीणाम् २९४ ४७,११२ १७६ १२१ १२१ १२१ ५२४. वृक्षाणाम् ११९ १९७ २०१ ५२५. वृक्षात् ५२६. वृक्षान् ५२७. वृक्षाय ५२८. वृक्षण २०१ १९७

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