Book Title: Katantra Vyakaranam Part 02 Khand 01
Author(s): Jankiprasad Dwivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
View full book text
________________
५४२
४२४. महान्
४४९
२३०
२३०
४२५. महान्तौ ४२६. मही ४२७. मह्यम् ४२८. माघवतम् ४२९. मातरि
२३०
م
४०८
४३०. माता
३२१
३२१
३३४
४३१. मातुः ४३२. माम् ४३३. माला ४३४. मालानाम्
<
م
कातायाकरणम् २३८/४४५. मुट् २३८/४४६. मुट्त्वम् १३१ ४४७. मृदवे वस्त्राय ३७१ ४४८. मृदुने वस्त्राय ३९७|४४९. यः १६०/४५०. यत्र १५६,४५१. यवल्वः १५५/४५२. यवल्वौ
३६३/४५३. यावकः ४७,११२/४५४. यासाम्
१७६/४५५. युङ् ११९/४५६. युजः १०४ ४५७. युऔ १०४|४५८. युवयोः १०४ ४५९. युवाभ्याम् १०४ ४६०. युवाम् ३१८ ४६१. युष्मकाभिः ३१८४६२. युष्पत् ४४९ ४६३. युष्मभ्यम् ४४९ /४६४. युष्माकं कुलदेवता ४४९/४६५. युष्माकम्
२५६
४३५. माले
२५६
تم
m
२५६
m
३८०
३६०,३८४
४३६. मासपूर्वाय ४३७. मासावराः ४३८. मासेन पूर्वाय ४३९. मासेनावराः ४४०. मित्रभुवः ४४१. मित्रभुवौ ४४२. मुक्
३६३
३३४
६५,३७४
४४३. मुक्त्वम् ४४४. मुग्भ्याम्
३५७,३७५
३५१ ३६५

Page Navigation
1 ... 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630