________________
३२४
कातन्त्रव्याकरणम्
[रूपसिद्धि]
१. स्त्रियो । स्त्री +औ । प्रकृत सूत्र से 'स्त्री' शब्द को धातुवद्भाव तथा "ईदूतोरियुदी स्वरे" (२।२।५६) से ईकार को इयादेश ।
२. स्त्रियः । स्त्री + जस् । प्रकृत सूत्र से धातुवद्भाव, ई को इयादेश तथा "रेफसोविसर्जनीयः" (२।३।६३) से सकार को विसगदिश ।।२१७।
२१८. वाऽम्शसोः [२।२।६२] [सूत्रार्थ]
अम् और शस् प्रत्ययों के परे रहते 'स्त्री' शब्द को वैकल्पिक धातुवद्भाव होता है ॥२१८।
[दु० वृ०
स्त्रीशब्दो धातुवद् भवति वा अम् - शसोः परयोः । स्त्रियम्, स्त्रीम् । स्त्रियः, स्त्रीः ।।२१८।
[दु० टी०]
वाम् । तुल्यायामपि संहितायां षष्ठीबहुवचनस्य न ग्रहणम्, शसा साहचर्यात् ।।२१८i
[समीक्षा]
'स्त्री + अम्, स्त्री+शस्' इस स्थिति में दोनों ही व्याकरणों में विकल्प से ई को इय् आदेश करके 'स्त्रियम्, स्त्रीम् । स्त्रियः, स्त्रीः' शब्दरूप सिद्ध किए गए हैं । अन्तर यही है कि पाणिनि ने "वाऽमशसोः" (अ०६।४।८०) सूत्र द्वारा साक्षात् ही इयङ् आदेश किया है, परन्तु शर्ववर्मा ने वैकल्पिक धातुवद्भाव करके उक्त रूप सिद्ध किए हैं।
[रूपसिद्धि]
१. स्त्रियम्, स्त्रीम् । स्त्री + अम् । प्रकृत सूत्र द्वारा वैकल्पिक धातुवद्भाव । धादुवद्भावपक्ष में इयादेश - स्त्रियम् । धातुवद्भाव के अभाव में अम् के अकार का लोप - "अम्शसोरादिलॊपम्" (२।१।४७)- स्त्रीम् ।