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नामचतुष्टयाध्याये तृतीयो युष्मत्पादः [समीक्षा]
'युष्माकम्, युष्मभ्यम्, युष्मान्' के स्थान में वः' तथा 'अस्माकम्, अस्मभ्यम्, अस्मान्' के स्थान में 'नः' आदेश कातन्त्रकार तथा पाणिनि दोनों ही आचार्य करते हैं, जिससे 'पुत्रो युष्माकम्, पुत्रो वः' तथा 'पुत्रोऽस्माकम्, पुत्रो नः' शब्दरूप सिद्ध होते हैं । पाणिनि का सूत्र है - "बहुवचनस्य वस्नसौ" (अ० ८।१।२०) । यह ज्ञातव्य है कि ये आदेश केवल युष्मद्-अस्मद् शब्दों के ही होते हैं तथा 'युष्माकम्' आदि से पूर्व किसी पद के रहने पर ही होते हैं । इसके फलस्वरूप 'पुत्रस्तेषाम्' तथा 'युष्माकं पुत्रः, अस्माकं पुत्रः' आदि स्थलों में ये आदेश प्रवृत्त नहीं होते हैं ।
[रूपसिद्धि]
१. पुत्रो वः । पुत्रो युष्माकम् । यहाँ 'पुत्रः' पद पूर्व में स्थित है, इससे 'युष्मद् + आम्' इस अलौकिक विग्रह में निष्पन्न षष्ठीविभक्तिबहुवचनान्त 'युष्माकम्' के स्थान में प्रकृत सूत्र द्वारा ‘वस्' आदेश तथा “रेफसोर्विसर्जनीयः" (२।३।६३) से विसदिश ।
२-३. पुत्रो वः । पुत्रो युष्मभ्यम् । पुत्रो वः । पुत्रो युष्मान् । पूर्ववत् 'पुत्रः' पद के पूर्ववर्ती होने पर 'युष्मभ्यम्' (युष्मद् + भ्यस्= चतुर्थीबहुवचन) तथा 'युष्मान्' (युष्मद् + शस्= द्वितीयाबहुवचन) को 'वस्' आदेश, स् को विसर्ग ।
४-६.पुत्रो नः । पुत्रोऽस्माकम् |पुत्रो नः |पुत्रोऽस्मभ्यम् । पुत्रो नः।पुत्रोऽस्मान् । 'पुत्रः' पद के पूर्व में रहने के कारण परवर्ती अस्मद् शब्द से षष्ठी- चतुर्थीद्वितीयाविभक्तियों के बहुवचन में निष्पन्न 'अस्माकम्, अस्मभ्यम्, अस्मान्' के स्थान में 'नस्' तथा स् को विसगदिश ।।२२२।
२२३. वां नौ द्वित्वे [२।३।२]
[सूत्रार्थ]
पद से परवर्ती तथा युष्मद्- अस्मद् शब्दों से षष्ठी-चतुर्थी- द्वितीया विभक्तियों के द्विवचन में निष्पन्न 'युवयोः, युवाभ्याम्, युवाम्' के स्थान में ‘वाम्' आदेश तथा 'आवयोः, आवाभ्याम् , आवाम्' के स्थान में 'नौ' आदेश होता है ।। २२३ ।