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नामचतुष्टयाध्याये तृतीयो युष्मत्पादः
षष्ठ्यर्थो विवक्षित इति । गेये गानविषये वामिति युवयोर्मध्ये कस्य कवेरियं कृतिरिति राज्ञा स्वयं पृष्टौ तौ विनीतौ वाल्मीकीति केन मूर्ध्नाऽशंसताम् इत्यन्वयेऽपि न दोषः || २२३ ।
[समीक्षा]
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'ग्रामो युवयोः, ग्राम आवयो:' इस अवस्था में कातन्त्रकार तथा पाणिनि दोनों ही आचार्य ‘युवयोः’ के स्थान में 'वाम्' तथा 'आवयोः' के स्थान में 'नौ' आदेश करके ‘ग्रामो वाम्, ग्रामो नौ' इन शब्दों का भी साधुत्व घोषित करते हैं । पाणिनि का सूत्र है - “ युष्मदस्मदोः षष्ठीचतुर्थीद्वितीयास्थयोर्वान्नावौ ” ( अ० ८।१।२०) ।
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[रूपसिद्धि]
१- २. ग्रामो वाम् । ग्रामो युवयोः । ग्रामो नौ ग्राम आवयोः । ‘ग्रामः' इस पद के पूर्ववर्ती होने पर 'युष्मद्' शब्द से षष्ठीविभक्ति - द्विवचन 'ओस्' प्रत्यय में निष्पन्न 'युवयोः' के स्थान में 'वाम्' तथा 'अस्मद्' शब्द से षष्ठीद्विवचन में निष्पन्न 'आवयोः' के स्थान में 'नौ' आदेश |
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३-६. ग्रामो वां दीयते । ग्रामो युवाभ्याम् । ग्रामो नौ दीयते । ग्राम आवाभ्याम् । ग्रामो वां पातु । ग्रामो युवां पातु । ग्रामो नौ पातु । ग्राम आवाम् । 'ग्रामः' पद के पूर्व में होने से 'युष्मद्' शब्द से चतुर्थी - द्विवचन 'भ्याम् ' प्रत्यय में निष्पन्न 'युवाभ्याम्' एवं द्वितीया - द्विवचन 'औ' प्रत्यय में निष्पन्न 'युवाम्' के स्थान में 'वाम्' आदेश अथ च 'अस्मद्' शब्द से चतुर्थी - द्वितीया - द्विवचन में निष्पन्न 'आवाभ्याम् - आवाम्' के स्थान में 'नौ' आदेश || २२३ |
२२४. त्वन्मदोरेकत्वे ते मे त्वा मा तु द्वितीयायाम् [२।३।३]
[सूत्रार्थ]
षष्ठी - चतुर्थी विभक्तियों के एकवचन में 'युष्मद् - अस्मद्' शब्दों से निष्पन्न 'तव - तुभ्यम्' के स्थान में 'ते' । 'मम - मह्यम्' के स्थान में 'मे' आदेश होता है किसी पद से पर में रहने पर परन्तु युष्मद् - अस्मद्' शब्दों के द्वितीया - एकवचन के रूप 'त्वाम् - माम्' के स्थान में क्रमशः 'त्वा मा' आदेश होता है ।