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कातन्त्रव्याकरणम्
व्याख्याकारों के अनुसार सूत्र में ‘सर्वतः' पद के पाठ से अनुवृत्त ‘अकारान्त' शब्द का अर्थ 'अवर्णान्त' किया जाता है , अतः ‘यासाम्, तासाम्' आदि शब्दरूप भी सिद्ध होते हैं । 'लक्षणप्रतिपदोक्तयोः प्रतिपदोक्तस्यैव ग्रहणम्' (कात० प० पा० ७५) इस परिभाषा के अनुसार 'त्वाम्, युवाम्' में 'सु' आगम नहीं होता है।
[रूपसिद्धि]
१. सर्वेषाम् । सर्व + आम् । प्रकृत सूत्र से 'सु' आगम, "तृतीयादौ तु परादिः" (२।१।७) से उसकी ‘आम्' प्रत्यय से पूर्व में योजना, "घुटि बहुत्वे त्वे" (२।१।१९) से अकार को एकार तथा "नामिकरपरः०" (२।४।४७) से सकार को षकारादेश |
२. विश्वेषाम् । विश्व + आम् । प्रकृत सूत्र से 'सु' आगम आदि पूर्ववत् योजना |
३. यासाम् । यद् + आम् । “त्यदादीनाम विभक्तौ” (२।३।२९) से 'द्' को 'अ', "अकारे लोपम्" (२।१।१७) से पूर्ववर्ती 'अ' का लोप, "स्त्रियामादा" (२।४।४९) से आकार, प्रकृत सूत्र से 'सु' आगम और "तृतीयादौ तु परादिः" (२।१।७) से उसकी परादियोजना।
४. तासाम् । तद् + आम् | "त्यदादीनाम विभक्तौ" (२।३।२९) से 'द्' को 'अ' आदेश आदि पूर्ववत् ।। १०८।
१०९. जस् सर्व इ. [२।१।३०] [सूत्रार्थ]
सर्वनामसंज्ञक अकारान्त लिङ्ग-प्रातिपदिक से परवर्ती जस् प्रत्यय के स्थान में 'इ' आदेश होता है ।। १०९ ।
[दु० वृ०]
अकारान्तात् सर्वनाम्नो लिङ्गात् परो जस् सर्व इर्भवति । सर्वे । विश्वे । अकारान्तादिति किम् ? सर्वाः ।। १०९।
[दु० टी०]
जस्० । अकारान्तमिह वर्तते, न तु सर्वत इति । यस्मान्निर्विशेषणं सामान्य सविशेषणं विशिष्टमिति युक्तमिह 'विशेषातिदिष्टः प्रकृतं न बाधते' (कात०प० १९)