Book Title: Karmagrantha Part 1
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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से भिन्न या विपरीत स्वभाव क्रिया वाला पदार्थ विजातीय कहा जाता है । अत्र समान गुण-धर्म वाले पदार्थों का संयोग होता है, तब कोई विकार पैदा नहीं होता, परन्तु विरुद्ध गुणधर्म वाले पदार्थों के मिलते ही उनमें विकार पैदा हो जाता है और वे बिकृत कहलाते है। विज्ञान और चिकित्साशास्त्र द्वारा यह स्पष्ट देखा जा सकता है। विजातीय पदार्थ के संयोग से होने वाली क्रिया की प्रतिक्रिया राज में ही दिखलाई देती है ।
निर्जीव पदार्थों में भी विजातीय द्रव्य के मिलने से विकार तो उत्पन्न होता है, परन्तु उनकी क्रिया प्राकृतिक नियमानुसार स्वतः होती रहने से के अपनी ओर से प्रतिक्रिया करने का यत्न नहीं करते हैं। लेकिन सजीव द्रव्य की यह विशेषता है कि वह विजातीय पदार्थ का संयोग करते हुए भी उस विजातीय द्रव्य के संयोग को सहन नहीं करता है और उसे दूर करने के लिए प्रयत्नशील रहता है। अपने संयोग से सुन-सी बनी हुई इन्द्रियों आदि के संयोग में आई हुई विजातीय वस्तुओं को दूर करने का प्रयत्न आरम्भ बार देता और जब तक वह विजातीय पदार्थ दूर नहीं हो जाता, तब तक उसे नहीं पड़ता । तात्पर्य यह है कि राजीव विजातीय द्वन्च के संयोग से विकारग्रस्त होता है और विजातीय द्रव्य का संयोग ही विकार का जनक है ।
इस कथन का सैद्धान्तिक फलितार्थ यह है कि जीव के लिए अजीव विजातीय पदार्थ है और जब जीव के साथ अजीव का संयोग होता है तो जीव में विकार उत्पन्न होता है । जीव के साथ अजीव का संयोग और तज्जन्य कार्य को दार्शनिक शब्दों में कर्म या इसके समानार्थक अन्य शब्दो से कह सकते हैं।
कर्म शके वाचक विभिन्न शब्द
कर्म शब्द लोकव्यवहार और शास्त्र दोनों में व्यवहृत हुआ है । जनसाधारण अपने लौकिक व्यवहार में काम ( कार्य ), व्यापार, क्रिया आदि के अर्थ में कर्म शब्द का प्रयोग करते हैं। शास्त्रों में विभिन्न अर्थों में कर्म शब्द का प्रयोग किया गया है। जैसे कि खाना पीना, चलना आदि किसी भी हलचल के लिए, चाहे वह जीव की हो या अजीव को हो कर्म शब्द का प्रयोग किया जाता है । कर्मकांडी मोमांसक यज्ञ यागादिक क्रियाओं के अर्थ में,
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