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है, बहुतहि अछा है, मेंभी आपकी सेवामेरहूं, अर्थात् मेंभी आपका शिष्य होवू, तब गुरु महाराज बोले, हे भद्र जैसा सुखहोवे वेसाकरो परंतु शुभकार्यमें देरीनहिंकरणी ऐसा महाराजश्रीका वचन सुणके जैनधर्म ऊपर परिपूर्ण श्रद्धाभइ, और क्रमसें गुरुवचनानुसार चारित्रग्रहणकरके और धार्मिकशास्त्र न्याय व्याकरण वगेरे शास्त्रोंकी शिक्षा ग्रहण करके विचक्षण भये और सर्वमुनिमंडलमे शिरोमणि हूवे और जैनमुनियों में पंडितशिरोमणि थे, और कितनेक जैन सिद्धान्तोंका गुरुमुखसे अवगाहनकियाथा और कितनेक कर रहेथे, इस अवसरमे हमारे अभाग्यके दोषसें और जैन प्रजाके गुणीव्यक्तिका अभाव ज्ञानि देखा था इस कारणसे आपका देहान्त हुवा, और आपने चारित्रग्रहण करके १४ चोमासे श्रीगुरुमहाराजके साथहि कियेथे, ५७-५८ वीकानेर शहर और जेतारणमें हुवाथा, देश मारवाड, ५९-६० यह चोमासे देश काठियावाड पालिताणा और पोरबंदर में हुवेथे, वाद ६१-६२-६३-६४-६५ कछ मुंद्रा कछभुजराजधानी कछमांडवीवंदर, कछभिदडा कछअंजारशहर, यह ५ चोमासे कछदेशमे अनुक्रमसें हुवेथे, वाद ६६ का चोमासा फिर पालिताणेमें हुवा था, देश काठियावाड, वाद ६७-६८ जामनगर और मोरवी राजधानी मे हुवे थे, चोमासे, वाद ६९ का चोमासा देश गुजरात राजनगर याने अमदावाड़ मे हुवा था, वादरतलामवाले सेठाणी साहबके जादातर आग्रहसें फिर पालिताणे मे हुथा, यह ७० की सालका चोमासा देश काठियावाड मे (सोरठ) अपश्चिम हुवाथा, और आपकी ऊंबर तो छोटीथी, परन्तु बुद्धि और प्रतिभा बहुतहि अतिशायिनीथी, और
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