Book Title: Jinbhadragani Krut Dhyanshatak evam uski Haribhadriya Tika Ek Tulnatmak Adhyayan
Author(s): Priyashraddhanjanashreeji
Publisher: Priyashraddhanjanashreeji
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मूल ग्रन्थकार का व्यक्तित्व और कृतित्व
जैन-शासन में जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण आगम के विशिष्ट ज्ञानी थे। वे आगमों के प्रति अगाध श्रद्धावान् तथा निष्ठावान् के रूप में प्रख्यात थे। उनके आचार-विचार तथा चिन्तन के पक्ष स्वतन्त्र नहीं थे, अपितु आगम-तन्त्र से जुड़े हुए थे। आचार्य सिद्धसेन ने युक्ति का आलम्बन लेकर आगमों को जाना एवं समझा, लेकिन जिनभद्रगणि ने आगमों का आलम्बन लेकर युक्त और अयुक्त का चिन्तन-मनन किया। उन्होंने यदि अन्य परम्परा या मतों का खण्डन भी किया है, तो आगम के एक-एक शब्द को आधार-रूप बनाकर किया है, ताकि आगमिक–परम्परा को व्यवस्थित तथा सुरक्षित रखा जा सके, इसलिए इतिहास के स्वर्ण-पृष्ठों पर जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण का नाम अगिम पंक्तियों में अंकित है ।
मूल ग्रन्थकार का व्यक्तित्व - जैन-आगमों में भाष्यकारों के रूप में संघदासगणि तथा जिनभद्रगणि- इन दो आचार्यों का स्थान प्रमुख है। इनमें भी जिनभद्रगणि का स्थान सर्वश्रेष्ठ है। प्राचीन ग्रन्थों के अवलोकन से भी यह ज्ञात होता है कि जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण के जीवन-प्रसंगों से सम्बन्धित विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं है। न तो उनकी जन्मभूमि और न ही उनके पारिवारिक-विवरणों के विषय में कुछ सामग्री मिलती है, लेकिन 'विविध तीर्थकल्प' में जिनभद्रगणि से जुड़ा हुआ एक उल्लेख दृष्टिगोचर होता है, वह इस प्रकार है38_
"इत्थ देवनिम्मिअथूभे पक्खक्खवमणेण देवयं आराहित्ता जिनभद्दखमासमणेहिं उहेहि आभक्खियपुन्थमपत्तत्त वृहंभग्गं महानिसीहं संधि।।
31 मोत्तूण हेउवायं आगममेत्तावलंबिणो होउं।
सम्मण चिंतणिज्ज किं जुत्तमजुत्तमेयंति ।। -विशेषणवती. 38 विविध तीर्थकल्प, पृ. 19.
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