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जन पाठावली)
(१) योग्य समय पर ज्ञान प्राप्त करना।
(२) जिनसे ज्ञान प्राप्त करना है उनकी सेवा करना । ऐसा करने से ज्ञान सिखाने वाले का प्रेम वढता है और उस प्रेम के कारण सिखाने वाला अपना ज्ञान शिष्य ( सीखनेवाले) को देता है।
(३) सिखाने वाले गुरु का बहुमान करना चाहिए । सच्चे दिल से गुरु पर स्नेह रखना चाहिए । गुरु पर प्रेम हो । तभी विद्या मिलनी है । इस विषय मे एकलव्य का और राजा श्रेणिक का उदाहरण प्रसिद्ध है।
(४) तप करना चाहिए । अर्थात् इच्छाओ को काबू मे रखना चाहिए । ऐसा करने से जान सफल होता है ।
(५) जिससे ज्ञान प्राप्त किया हो उसका नाम छिपाना नही चाहिए । गुरु का नाम छिपाना एक प्रकार की चोरी है। इससे ज्ञान की हानि होती है।
(६) शास्त्रो मे या गुरु के वचन में स्वच्छद होकर, दभ के कारण पाठ में फेरफार नहीं करना चाहिए।
(७) स्वार्य के लिए मनमाना अर्थ नहीं निकालना चाहिए।
(८) ज्ञानी पुरुप की झूठी निन्दा नहीं करनी चाहिए। ऐसा करने से ज्ञान की प्राप्ति में वाधा पटती है।
ज्ञान के अतिचार:
पास्त्र का ज्ञान प्राप्त करने के लिए ऊपर बतलाये आठो नियमो का ध्यान रखना आवश्यक है। इसमें मल होने पर ज्ञान प्राप्त करने में बहुत कठिनाई होती है ।