________________
७६)
(तृतीय भाग
(२) हिरण्णसुवण्ण- पमाणाइक्कमेचादी, सोना, जवाहरात
आदि के परिमाण ना
उल्लंघन किया हो ।
धन-धान्य के परिमाप
का उल्लंघन किया हो।
(४) दुपपच उप्पथ पमाणाइक्कमे द्विपाद, चतुष्पाद के परि
माण का उल्लंघन किया
हो ।
(३) धणधन्न - पमाणाइक्कमे
(५) कुविध - पमाणाइक्कमे
वर्तन - वासन, फरनीच
आदि घर वखरे मे
'परिमाण' का उल्लघन किया हो तो वह मेरा
पाप. मिथ्या हो ।