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जैन पोठावली 1 व्यापारी ने कन्या का विवाह श्रेणिक के साथ कर दिया। उस समय आजकल की तरह जाति-पाति का भेदभाव नही था। श्रेणिक और नन्दा का जीवन आनन्द के साथ बीतने लगा।
राजगृही के राजा बीमार पडे । उन्होने बडे-बडे वैद्यो को वुलवाया । वैद्यो ने कहा-'अब आपके अतिम दिन आ गये है।' यह सुनकर राजा ने श्रेणिक की खोज करने के लिये चारो तरफ घुड-सवार दौडाये।
एक दूत फिरते-फिरते वेणातट पहुँचा। उसने श्रेणिक को खोज निकाला और राजा की बीमारी का समाचार कहा। 'पिता मृत्यु शय्या पर पडे है और मुझमे उनका मन उलझा है, यह जान लेने पश्चात् विनयी श्रणिक घडी भर भी नहीं रुक सकता था। उसने नन्दा से सब बात कही। नन्दा उस समय गभिणी थी। श्रेणिक ने नन्दा से कहा-'प्रिये । में अपने पिता की सेवा में जाता हूँ। यह चिट्ठी अपने पास रहने दो। ६ भी काम आयगी।' इसके बाद सबकी आज्ञा लेकर श्रेणिक घोडे पर सवार होकर चल दिया।
श्रेणिक राजगृही में आया। राजा को बहुत प्रसन्नता हुई। राजा ने तो तैयारी कर ही रखी थी। अच्छे दिन नगर के महाजनो को और मन्त्रियो को बुलाकर श्रेणिक को राज्यतिलक किया गया। अब कुमार श्रेणिक राजगृही का राजा बन गया । उसने पिताजी की खूब सेवा की। आखिर राजा प्रसेनजित, परलोक सिधार गये।