Book Title: Jain Pathavali Part 03
Author(s): Trilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
Publisher: Tilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar

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Page 222
________________ २२० ) ( जैन पाठावली सोमिल ब्राह्मण पर उन्होने तनिक भी क्रोध नही किया । क्रोध वह करता है जो आत्मा को नही पहचानता । जो आत्मज्ञानी है वह क्रोध नही करता । मुनि ने सोचा - तेचारा सोमिल तो निमित्तमात्र हैं । इस दुःख का असली कारण तो मैं स्वय ही हूँ । मैने पूर्वभव में जैसे कर्म किये हैं, उनका फल भव भोगना ही होगा । अपने पूर्वकर्म को खपाने के लिए निमित्त मिल जाता है । उस निमित्त पर क्रोध करने से क्या लाभ है? गजसुकुमार मुनि ने सीधी बात सोची कि - दूसरो के ससुर तो कपडे की पगडी बंधाते हैं, पर मेरा ससुर मुझे मोक्ष की पगडी वधा रहा है ।' इस प्रकार सोमिल पर क्रोध न करके मुनिराज ने उसका उल्टा उपकार माना। वे आत्मा का ही विचार करते रहे और अन्त मे मोक्ष के अधिकारी बने । - धन्य है गजमुकुमार मुनि की क्षमा । धन्य है गजसुकुमार मुनि का ध्यान धन्य है गजमुकुमार मुनि की भावना 1 1 } वालको । इस उदाहरण से इतना जरूर समझ लेना कि वैर का बदला किसी न किसी भंव मे अवश्य चुकाना पडता है | बदला चुकाये विना कोई छुटकारा नही पा सकता । इसलिए किसी के साथ वैर मत करना ।

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