Book Title: Jain Pathavali Part 03
Author(s): Trilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
Publisher: Tilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar

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Page 230
________________ २२८.) (जैन पाठावली, घोर दु.ख भोगे तो भी डिगी न लगारी । डिगी न लगारी उनको वदना हमारी ।। देखो० ॥ दिये दु ख खूब देव भोगे सब कामदेव, भोग कर भी दुःख अहा ! डिगे न लगारी । डिगे न लगारी उनको वदना हमारी । देखो०' ।। धन्य धन्य वे नरनारी, ऐसे दृढ धर्मधारी, जीवित सुधारा सारा, पाये भव पारी, पाये भव पारी उनको वंदना हमारी । देखो. ।।। (६) भावना - - रात्रि में शीघ्र सो करके सुबह जल्दी उठूगा मे, जिनेश्वर का भजन करके हृदय निर्मल बनाऊँगा ॥१॥ पिता-मातादि गुरुजन का तथा निज मातृभूमि का, चुकाने के लिए कर्जा सदा कर्तव्य पालुंगा ॥२॥ मधुर अरु सत्य बोलूंगा मिले खारा कि या मीठा, भाग निज बधुओ को दे करूँगा मैं सदा भोजन ॥ ३ ॥ भले मोटी रहे खादी हमारी है वह आबादी, . सादगी स्वच्छता वाले अहिमक वस्त्र पहनूंगा ।। ४ ।। कलह को हाय जोडूंगा न न्यूनाधिक गिनूंगा मैं,

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