________________
तृतीय भाग )
(२२९. दान देकर खुशी होना खरा यह धर्म धागा ॥ ५ ॥ वीर सन्तान बनने पर है डर किसका बताओ तो ? मिला जो सत्य परवाना उसे ले स्वर विचरूँगा ॥६॥ नीति नेकी अचल प्रीति अहिंसा वीर की नीति, रमा करके हृदय में हम जगत् मे शान्ति फैलाएं ।।७।।
"
(७) धुन
-
ॐ अन्तर्यामी देव ''शुद्ध चित्त हो करूं सेव, - चित्त शान्ति नित्यमेव, . ॐ अन्तर्यामी देव!
(२) अभिमान तजो, अभिमान तजो, प्रभु बनने को अभिमान- तजो ।
भगवत्त भजो भगवन्त भजो, भव अन्त करन भगवन्त भजो