Book Title: Jain Pathavali Part 03
Author(s): Trilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
Publisher: Tilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar

View full book text
Previous | Next

Page 225
________________ , तृतीय भाग) (२२३ (२) प्रभु का नाम-रसायन . प्रभु-नाम का सेवे रसायन पथ्य पर पाले नही, तो लेश फल पावे नही भव-रोग भी जावे नही ।। हैं प्रथम पथ्य असत्य भाषण भूल कर करना नही, औ साथ ही निन्दा किसी की तथ्य' भी करना नही। अपनी बडाई आके ही वदन २ से करना नही, जिंदगी भर ३दुर्व्यसन सेवन कभी करना नही। आप सम सब प्राणियो को देख दुख देना नही, पर सम्पदा पाषाण है, यह जानकर लेना नही । । अन्त करण हो शुद्ध सात्त्विक सर्वदा न मलीन हो, दभ दुर्जनतादि दोषो में कदापि न लीन हो । माता समान लखे परस्त्री दृष्टि विकृत हो नही, तल्लीन हो प्रभु के भजन में व्यर्थ क्षण खोवे नहीं। मैं हूँ बडा अभिमान ऐसा चिल में करना नही, परमार्थ से सामर्थ्य होते पर भर हटना नही। स्वार्थ-साधन के लिए भी पाप आचरना नही, छल-कपट मायाचार अतिम श्वास तक करना नहीं ।। १ तथ्य-ठीक, सही । २ वदन-मुख ३ दुर्व्यसन-बुरी आदत ।४ दुर्जनतादि-दुर्जनता आदि ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235