Book Title: Jain Pathavali Part 03
Author(s): Trilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
Publisher: Tilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar

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Page 224
________________ काव्यविभाग ' (१) प्रातः प्रार्थना ____ --00.00 (शिखरिणी छंद) प्रभो । अन्तर्यामी जगत-जन का तूं शरण है, पिता माता भ्राता अनुपम सखा भद्रकर है । प्रभा कीति कान्ति धन विभव सर्वस्व जन के, नमूं मै वर्दू में विमलसुख स्वामी जगत के ॥ असत्यो से स्वामी परम सत् की ओर कर दे, घना अधेरा है हृदय-थल आलोक भर दे। महामृत्यु में से अमृत-तट की ओर कर दे, वियोगी हूँ तेरा जिन दरस का दान कर दे । दयासिन्धो | देव प्रवर जलधे पुण्य-यश के, वहे ऐसी धारा सतत तुझ से देव । नित ही। अनोखी हो शान्ति सकल जग के जीवगण में, न व्याप किंचित् भी दुख-दरद पृथ्वी पर कभी॥ :

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