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तृतीय भाग )
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(३) नाक का विषय गन्ध
बैठता भौरा कमल पर - गन्ध का लोभी बना, फिर बन्द हो जाता उसी में गन्ध-लोलुपता सना । आता द्विरद? खाता कमल लेता भ्रमर के प्राण है, सोच मानव ! विषय-विष का क्या बुरा परिणाम है ॥
(४) आंख का विषय रूप
हाथ मे ले - दीप कहिए कूप में को जात है. -दीप- की युति देख किन्तु पतग मन ललचात है ।
वह दीप में ही भस्म होता मूर्खता अप्रमाण है, सोच मानव ! विषय विष का क्या बुरा परिणामहे ||
(५) कान का विषय शब्द
वन में शिकारी पहुँचकर गाता मधुर संगीत है, | भोला हिरन जाता निकट होता नही भयभीत है । हा । तब शिकारी प्राण लेने छोड देता बाण है,
सोच - मानव ! विषय-विष का क्या बुरा परिणाम है ।।
द्विरद हाथी । २ अप्रमाण बेहद ।
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