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तृतीय भाग)। हो सकता है मगर सोमिल तो पूर्वभव का लेनदार ठहय, सच्ची बात उसके ध्यान में कैसे आती ? सोमिल ने गुस्से ही गुस्से में विचार किया-सगाई करके, विना ही कारण, मेरी लड़की को त्यांग देने वाले इस साधुडे की अच्छी तरह खवर लेनी चाहिए।' इस तरह विचार करके वह गजसुकुमार की खोज में निकला। . ... उसने गजसुकुमार को श्मसान में खडा देखा। देखते ही उसके मन मे पहले भव का क्रोध भड़क उठा । उसने इधर उधर नजर दौडाई । कोई दूसरा आदमी वहाँ नजर न आया । अच्छा मौका मिल गया। उसने थोडी दूर चिता में खैर के अंगार देखे । मुर्दे को जलाकर लोग चले गये थे। सोमिल उन दहकते हुए अंगारो को उठा लाया और गजसुकुमार के पास गया ।
- गजसुकुमार मनि आत्मध्यान में स्थिर खडे थे। सोमिले को इससे और सुभीता हो गया। उसने , पहले गीली मिट्टी लेकर माथे के चारो तरफ पाल बनाई । मुनि का मस्तक जब सिगडी सरीखा बन गया तो उनमे अगार भर दिये । मुनि का शरीर सुकुमार था और सिर विना बालो का था।
तड-तड करके चमडी तडकने लगी। अन्त मे खोपड़ी फट गई । आह | कितनी भयङ्कर वेदना मुनि को हुई होगी। मगर धन्य हैं मुनिराज गजसुकुमार । वे जानते थे कि आत्मा नित्य है और अनित्व शरीर है | इस ज्ञान के कारण वे आत्म. ध्यान में दृढ से दृढ़तर होते गए।