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तृतीय- भाग )
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कोमल । राजकुमार गजसुकुमार श्रीकृष्ण वासुदेव के छोटे
भाई थे ।
गजसुकुमार ने भगवान् नेमिनाथ का उपदेश सुना । पूर्वभव के अच्छे सस्कारो के कारण उन्हे भगवान् का उपदेश बहुत रुचा । माता-पिता की आज्ञा लेकर, छोटी उम्र में ही उन्होने भगवान् से दीक्षा ले ली । राजकुमार अब मुनि बन गये ।
कहाँ राजमहल और कहाँ वन विहार ? मगर गजसुकुमार का मन, मजबूत था । सच है - जिसने अपने मन को जीत लिया उसने सारे संसार को जीत लिया ।
गजसुकुमार मुनि ने भगवान् नेमिनाथ से कहा- 'भग वन्। मुझे मोक्ष का छोटे से छोटा मार्ग बतलाइए ।'
भगवान् ने कहा- आयुष्मन् 1 ध्यान ही मोक्ष का छोटा मार्ग है। ध्यान की सिद्धि उस समय होती है जब शरीर के ऊपर तनिक भी मोह न रहे । सदाचार, संयम, ज्ञान और तप जिसने प्राप्त नही किये, वह इस मार्ग पर नही चल सकता । यह मार्ग जितना छोटा है उतना ही कठिन भी है । पर तूं इस मार्ग पर चल सकेगा, क्योकि तूने बहुत-सी बाते पा ली हैं ।
गजसुकुमार - तोभन्ते । एकान्त मे जाकर ध्यान करने की मुझे आज्ञा प्रदान कीजिए ।'
भगवान् - हाँ वत्स | जा सकते हो। तुम्हारा भार्ग प्रशस्त हो । आत्म- ध्यान में मस्त हो जाओ। देखो, कैसे श्रीकष्ट आएँ तुम पर्वत की तरह अचल रहना ।
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