Book Title: Jain Pathavali Part 03
Author(s): Trilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
Publisher: Tilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar

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Page 220
________________ २१८) (जैन पाठावली . गुरु की स्वीकृति पाकर गजसुकुमार मुनि बहुत प्रसन्न हुए। उन्होने गुरुजी को मस्तक झुकाया, आशीर्वाद लिया और एकान्त स्थान पाने के लिए चल दिये । मुनि एकान्त स्थान के लिए श्मसान मे गये । श्मसान के समान एकान्त स्थल और कौनसा मिलता। मसान अर्थात् मृतक मनुष्यो के आरोम लेने का स्थान । जहाँ गजसुकुमार मुनि पहुचे वह श्मसान इतना भयानक था कि अकेला आदमी विना घबराये रह नहीं सकता -था । मुनि ने वहाँ पहुच कर स्थान का प्रमार्जन किया, कायोत्सर्ग किया और आत्मा का चिंतन करने लगे। । आत्मभाव का रस तो जो जाने सो जाने | जिसने आत्मा को जान लिया, उसके लिए क्या जानना शेष रहा ? . गजमुकुमार ध्यान मे ऊँचे और ऊचे चढते जा रहे थे। उनकी काया स्थिर है। और उनकी वाणी तथा बुद्धि आत्मा से मिल गई है । इसी समय एक संकट आ गया, जिसकी कल्पना भी उन्होने नहीं की थी। बात यह थी। गजमुकुमार की सगाई एक ब्राह्मण की कन्या के साथ हो चुकीथी । कन्या के पिता का नाम था सोमिल । सोमिल को पता चला कि मेरा दामाद विवाह से पहले दीक्षा लेकर साधु बन गया है ! वम फिर क्या पूछना! सोमिल के क्रोध का पार न रहा। यो क्रोध का कारण साधारण था । · सभी जातियो में कुवारी कन्या का दूसरे पुरुप के साथ विवाह

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