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( जैन पाठावली
जागृत कर दिया । मुझे धिक्कार है कि भोग-विलास का त्याग करके भी मैं फिर उनके चक्कर में पड गया । मे आराम- तलव
बन गया ।
इस प्रकार पश्चात्ताप आते ही उनकी आत्मा जाग उठी दूसरे ही दिन उन्होने विहार कर दिया और पुण्डरीक पर्वत की तरफ चल दिये । वहाँ उन्होने घोर तप करना शुरू किया । यह जानकर दूसरे शिष्य भी ऐसा करने को तैयार हुए । अन्त तक सब वही रहे ।
अपने चारित्र गुरु को वोध देनेवाले पथक शिष्य धन्य है । शिथिलता को क्षण भर में दूर करनेवाले शैलकऋषि धन्य है ।
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गजसुकुमार
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ध्यान - लीन श्मशान में, गजसुकुमार मुनीश, हा ! सोमिल आया वहाँ रखकर मन में रीस | अंगारों से सिर जला, डिंगे न फिर भी लेश, सोमिल पर समता घरी, अन्त हुए परमेश ॥
जहाँ भगवान नेमिनाथ विराजमान थे वहाँ एक राजकुमार आया । राजकुमार का नाम गजसुकुमार था। उसकी चाल हाथी के समान गम्भीर थी और अग कमल के समान