Book Title: Jain Pathavali Part 03
Author(s): Trilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
Publisher: Tilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar

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Page 196
________________ १९४) (जैन पाठावली ____ जम्बू भी गुरु के पास गये । अहा | क्या उनका प्रभाव है । कैसा भीतर तक असर करने वाला उनका उपदेश है। उस दिन सुधर्मास्वामी ने ब्रह्मचर्य के विषय में चर्चा की। जम्बू ने उपदेश सुना और एकदम उसका प्रभाव पड़ा उन्हे क्षणिक मोह मे डूब जाना रुचिकर नही हुआ। श्रोता तो बहुत थे । मगर हरएक मे फर्क था । जम्बू ने पूर्वभव में तप किया था, इसी कारण उनके ऊपर अच्छा असर पड़ा। जम्बकुमार घर आये मगर मन उनका फिर गया । उन्हे न अच्छे-अच्छे कपडे रुचे ओर न मजा-मौज ही रुचिकर हुआ। उन्हे तो बस मुधर्मास्वामी ही याद आने लगे । माता-पिता ने पूछा-वेटा । इस सयम तू उदास क्यो है ? जम्बू ने दिल खोलकर कहा-पूज्यो । और कुछ नहीं इस ससार से मेरी तपोयत उठ गई है । विवाह की मुझे रुचि नही है । में ब्रह्मचर्य पालकर अपने जीवन को चमकाऊँगा । माता-पिता ने सोचा-लडके को बुरा न लगने दे और गृहस्थी मे जोड दे । विवाह हो जायगा तो ससार मे मन लगने लगेगा। माता-पिता ने कहा-बेटा । विवाह कर ले । इतनी सी बात हमारी मान ले । फिर हम तुझे नही रोकेगे । अपनी । स्त्रियो की आज्ञा लेकर जो चाहे, करना । जम्बू ने कहा-~~-बहुत अच्छा । मैं आपका कृतज्ञ हू, इसलिए इतनी वात अवश्य मानूंगा। मगर मेरे साथ जो

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