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( जैन पाठावली मकी । उसने मुनि से प्रार्थना करके, जीभ के द्वारा आँख में से कण निकाल लिया । कण निकालते समय सुभद्रा का कपाल मुनि के नजदिक आ गया और सुभद्रा के ललाट पर लगे हुए कुंकुम का दाग मुनि के कपाल पर लग गया ।
मुनि तो देह-दशा से मुक्त महायोगी थे। सुभद्रा भी एक गहासती थी । उमन छुने के लिए मुनि को नहीं छुआ था। मगर सास को तो बहाना चाहिए था और वह आज मिल गया । धर्म-द्वेष कितना अनर्थ उत्पन्न करता है ?
सुभद्रा को झूठा कलक लगा दिया । बुद्धदास ने भी पूछ-ताछ किये बिना ही कह दिया-~'कुलटा कही की, निकल जा मेरे घर से' और उसने मुभद्रा को जबरदस्ती घर मे वाहर निकाल दिया। सुभद्रा बाहर जाकर खड़ी हो गई । सास ने गाँव भर में ढिंढोरा पीट दिया और लोगों का झुण्ड जमा हो गया।
सुभद्रा ने, सच्चे दिल से बुद्धदास को ही अपना पति माना था। उसकी दृष्टि में अन्य पुरुप पिता और भाई के समान थे । एमी पवित्र सती की ऐमी दुर्दशा हुई। और सब कुछ नहन किया जा सकता है मगर कलक कैसे महन किया जाय ? गांव भर में वाते होने लगी। इस तरह की चर्चा में लोगो को बहुत मजा आता है। उन चारों को क्या पता कि दूसरे की गठी निंदा करने से कितना महान् पाप बॅधता है | और उस पाप को भोगते समय कितना कप्ट भोगना पड़ता है । 'सत्य बात