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तृतीय भाग)
(२०७ को वह कह नही सकती थी इस कारण मन ही मन कुढती और जलती रहती थी। ईर्ष्या और द्वेष मनुष्यता को भी कम कर देते हैं और अन्त मे मनुष्य अपनी मनुष्यता को गंवा बैठता है।
एक दिन मौका पाकर बुद्धदास की माता ने उससे कहादेख अपनी स्त्री का चरित । अब तो मानेगा कि नही ?
बुद्धदास देहली पर पैर रख ही रहा था। उसी समय माता ने यह वचन-बाण चला दिये । बुद्धदास ने देखा घर मे से निकलनेवाले जैन साधु के कपाल पर कुकुम का दाग लगा हुआ है।
माता हमेशा बुद्धदास से झूठी-झूठी बाते भिडाया करती यी। वह कहती सुभद्रा का चालचलन खराब है । पर बुद्धदास यह मान नही सकता था। पर जब उसने साधु के कपाल पर कुकुम का दाग अपनी आँखो देख लिया तो उसे भी सदेह-हो गया । और जब सुभद्रा के ललाट पर भी उसने कुकुम का टीका देखा तो सदेह पक्का हो गया। ___ . सच्ची बात इस तरह थी । तप का पारणा करने के लिए मुनि पधारे थे। सुभद्रा ने बडी भक्ति के साथ आहारदान दिया। आहार देते समय सुभद्रा ने देखा--मनि की आँख से जमीन पर वूद पड़ा है । सुभद्रा ने मनि की आँख की तरफ देखा । आँख म कण पड़ा हुआ था । मनि को अपने गरीर की परवाह नही
मगर भक्ति के कारण सुभद्रा मुनि का यह कष्ट न देख