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( जैन पाठावली
क्रोध के मारे पागल
अपनी सास से आज्ञा मांगने गई तो सास हो उठी । वह आग उगलने लगी- कुछ कसर रह गई हो । जा, उसे भी पूरी कर आ । तूने मेरे कुल को धब्बा लगाया कुलच्छिनी । ' कितने कठोर शब्द हैं।
सुभद्रा ने विनय के साथ मस्तक झुकाया और का माताजी | आप आज्ञा दें तो मैं जा सकती हूँ । आपको खरे-खोटे का पता लग जायगा ।'
क्रोध ही क्रोध में सास बोला तो चली जान, किस तुझे वाध रक्खा है ?
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सुभद्रा जाने को तैयार हुई। हजारो आदमी देखने लिए इकट्ठे हो गए । शील के प्रभाव से शोभित सुभद्रासती रवान हुई। कुएं पर पहुँची तो वहा सव सामग्री तैयार थी उसने शासन देवी का नाम लेकर चालनी उठाई और कुएँ मे डाल दी । उस जव जल भर चुका तो कच्चे सून से जल भरी चालनी खीच ली उसने दरवाजे पर जल छिड़का और छिड़कते ही दरवजा खुल गया । इसी तरह दूसरा, तीसरा और चौथा दरवाजा खुल गया । यह सब देखकर राजा और प्रजा में अनन्द छा गया । सती सुभद्रा का जय-जयकार होने लगा ।
सती सुभद्रा की निन्दा करने वाले भी अव प्रशसा करने लगे । धिक्कारने वाले धन्य धन्य' कहने लगे ।
के सुभद्रा की सास ने आकर माफी मांगी। वह सुभद्रा मैरो मे पडने लगे, पर सुभद्रा ने उसे पकड लिया । फिर सुभद्रा