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तृतीय, भाग)
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रहा था और कोई गुरुजी से प्रश्न कर रहा था। कोई तपस्वियो । की तथा बड़े मुनियो की सेवा करता था । जहाँ ऐसे सत वसते है, वहाँ स्वर्ग-सा लगता है।
राजगृही नगरी यहाँ से बहुत दूर नहीं थी। वहाँ के राजा का नाम कोणिक था । वह श्रेणिक महाराजा का पुत्र था ।
यह नगरी बहुत विशाल थी । उसमे गुणीजनो का वास था । सेठ-साहूकार भी बसते थे । उनमें से एक का नाम ऋषभदत्त था। उनकी पत्नी की कूख से एक पुत्र का जन्म हुआ । इकलौता पुत्र होने के कारण वह माता-पिता को वहुत लाडला था । उसका नाम जम्बू था।
धीरे-धीरे जम्ब कुमार सोलह वर्ष का हो गया । जगह जगह से विवाह की मँगनी आने लगी। माता-पिता ने आठ कन्याओ के साथ उसकी सगाई कर दी क्योकि उस समय कन्याएँ बहुत थी और पुरुपो की कमी थी । 'मेरे घर आठ बहुएँ आएंगी' इस विचार से माता का हर्ष समाता नही था । उसने विवाह की तैयारिया आरम्भ कर दी।
लग्न का दिन दिखलाया गया। थोडे ही दिन वाकी थे। मगलगीत गाये जा रहे थे। धूमधाम के साथ तैयारियाँ हो रही थी।
आज कुमार हिडोले पर चढकर झूल रहे थे। सोने की खाट है । होरो की डोरी है। उसी समय उन्हे बधाई मिली-~मुधर्मास्वामी पधारे है और नगर के लोग तथा महाजन गुरु के दर्शन के लिए जा रहे हैं।