Book Title: Jain Pathavali Part 03
Author(s): Trilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
Publisher: Tilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar

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Page 198
________________ (जैन पाठावलो है । और इसी कारण माधु बन रहे है । खैर, इस अपवाद की भी चिन्ना न की जाय; मगर लोग अन्याय का यह धन्धा क्यो करते है ' इन्हें समझाया क्यो न जाय ? इस प्रकार सोचकर जम्बकुमार चोरो के पास गये । चोरो के मुखिया का नाम प्रभव था। वात-चीत होने पर प्रभव ने अपनी कहानी सुनाई। उसने कहा- मै एक राजकुमार था। भाई के साथ कलह होने के कारण मैने घर का परित्याग कर दिया और जवर्दस्त चोर बन गया । शक्ति मुझमे थी ही, उसका उपयोग इस दिशा में होने लगा। धीरे धीरे मेरी धाक ऐसी जम गई कि मेरा नाम सुनते ही बालक चुप हो रहते । मेरी ऐसी धाक गाँव भर में जम गई थी, मगर चोर सदा डरपोक होता है। पकडे जाने का डर उसे लगा रहता है। जम्बू, प्रभव के पास गए । प्रभव को भय हुआ कि मैं पकडा जाऊगा । जम्बू ने कहा- भाई, डरो मत | यह बतलाओ कि तुम ऐसा वराव धन्धा क्या छोड नहीं सकते ? ___ जम्बकुमार के यह मधुर वचन सुनकर प्रभव ने अपने अपराध के लिए क्षमा माँगी । उसके साथी भी पोटलियाँ नीचे रख कर बैठ गये । आवाज सुनकर आठो स्त्रियां जाग उठी और फिर जम्कुमार मे कहने लगी-'नाथ । क्या हम सब को त्याग जाओगे ?' जम्बू ने कहा-तुम जब भी चलो न । स्त्रियां बोली-कुछ समय तक ससार में रहकर, मसार

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