Book Title: Jain Pathavali Part 03
Author(s): Trilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
Publisher: Tilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar

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Page 194
________________ जम्बू स्वामी श्री सधर्माचार्य के उपदेश से उपरत हुए, होकर विवाहित युवा भोगों मे कदापि न रत हुए । आप्सरा-सी आठ वधुओं को दिया अवबोध प्रभव जैसे चोर ने भी पा लिया शुभ बोध है । ऐसे त्यागी वीरवर, ज्ञानी जम्बुकुमार, पाकर केवलज्ञान को गये भवोदधि पार ॥ " गुरु गौतम के विषय मे तुम जानते ही हो । भगवान् महावीर के ग्यारह बडे शिष्य गणधर कहलाते थे । साधुओ के गण को - समूह को सँभालने वाले गणधर कहे जाते हैं । उन सव में पहले गणधर गौतम स्वामी थे । गौतम का जब निर्वाण हुआ उससे पहले ही दूसरे तीन गणधर कालधर्म पा चुके थे । इसलिए गौतम के बाद सुधर्मास्वामी सघ के नायक गिने गये । जैसा उनका नाम था वैसे ही उनमें गुण भी थे समता के सागर और ज्ञान के भण्डार थे । सत्य धर्म का करने के लिये उन्होंने कमर कस कर मिहनत की थी । । वे प्रचार एक बार विचरते - विचरते सुधर्मास्वामी वैभारगिरि पर पधारे । वनपाल की आज्ञा लेकर वे वन मे रहे । साथ में हजारो शिष्य थे । कोई ध्यान कर रहा था, कोई तत्त्वचर्चा कर

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