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तृतीय भाग)
(१८५ .' अब महाराज श्रेणिक मगध का तन्त्र चलाते हैं। श्रेणिक ने, शत्रुओ को भी अपने अधीन कर लिया है। योग्य मत्रियो की नियुक्ति की है। बुद्धि की परीक्षा करके, जो सबसे ज्यादा बुद्धिमान् था उसे मुख्य मंत्री बनाया है। उसका नाम अभयकुमार । अभयकुमार नन्दा का पुत्र था। वेणातट मे दी हुई चिठ्ठी पर से महाराज श्रेणिक अपनी पत्नी नन्दा और पुत्र अभयकुमार को पहचानता है।
श्रेणिक की दूसरी रानी का नाम चेलना था। चेलना के कारण ही राजा श्रेणिक जैन धर्म की तरफ आकर्षित हुए थे। रानी चेलना की बदौलत श्रेणिक का बहुत-से जैन साधुओ के साथ अच्छा परिचय हुआ था। अन्त में श्रेणिक राजा भगवान "हावीर के कट्टर और समर्थ भक्त बन गये थे।
नन्दन मणियार
पोषध-समय निज धर्म भूला बावड़ी मन में, वसी, अति रम्य पुष्करिणी-सुरचना देखकर मन में लसी। मर भेक नन्दन, था हुआ, जाति स्मरण पर पा लिया, अन्त में शभ भाव से फिर स्वर्ग को था पा लिया.॥