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( जैन पाठावली
थोडे दिन और बीतने पर नन्दन मणियार ने बावडी के चारों ओर सुन्दर बगीचा लगाने का विचार किया । उसने चारो दिशाओ मे चार वन बनवाये । वनो में तरह-तरह के फूल लगे भाति भाति के फल और नाना प्रकार की बेले लगी । नगर के लोग वनों में घूमने आते और स्नान करते । नन्दन मणियार का बखान भी करते यह सब देख सुन कर नन्दन मणियार को गर्व हुआ ।
नन्दन सोचने लगा- अगर इन लोगो को ज्यादा सुविधा पहुँचाऊँगा तो लोग मेरी और ज्यादा तारीफ करेगे। तब उसके चारो तरफ चार धाम वनाये । एक तरफ चित्रशाला, दुसरी तरफ पाकशाला, तीसरी तरफ वैद्यशाला और चौथी तरफ अलंकारशाला |
चित्रशाला में तरह-तरह के और सुन्दर रंगो वाले चित्रों के छोटे-बडे तन्ते सुशोभित हो रहे थे। उसमें लकडी के खिलौने भी थे । गिट्टी की भाति भाति की आकृतियां बनाई गई थी । तरह-तरह का कारीगरी का काम किया हुआ था । संगीतज्ञ लोग संगीत की तान छेडे रहते । नृत्यकार अपना नृत्य दिखलाते नन्दन मणियार ने ऐसी सुन्दर व्यवस्था कर रखखी थी ।
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पाकशाला मे भाति भाति का भोजन तैयार होता था । वहाँ अतिथियों को भोजन मिलता था । वैद्यकशाला में चतुर वैद्य रहते थे और प्रवासी रोगियो का मुफ्त उपचार करते वे । अलकारशाला मे कुशल नाई और सेवक काम करते थे ।