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(जैन पाठावली. भीम खडा हो जाता है । युधिष्ठिर कहता है-"भैया भीम, इस समय हम लोग पराधीन हैं ।' यह कहकर उमे रोकते है।
द्रौपदी तटक कर कहती है-'खवरदार ! मेरे पांच पतियो के सिवाय किसी ने हाथ लगाया तो उसकी खैर नहीं ! गुरुजनो । त्यायनीति के ज्ञाताओ' ।' प्रथम तो में स्त्री और फिर रजस्वला । आप सव के सामने यह दुश्शासन क्या कर रहा है ? तुम्हारा बडप्पन कहाँ चला गया है ___अरे वीरो | तुम्हारी वीरता कहाँ चली गई ? मेरे पति' पराधीन है, पर तुम लोगो को पराई बहिन-बेटी की आबरू जाती देखकर भी लाज नहीं आती ? शरमाओ । जरा तो शरमाओ ।'
द्रौपदी की यह ललकार सुनकर सव के मुह लटक गये। द्रौपदी धर्मराज युधिष्ठिर के सामने देखकर कहती है-'देव । आप और सब तो भूल गये | आपने भाईयो को भी दाँव पर चढ़ा दिया । पत्नी को दांव पर चढाते हुए भी आपको विचार नही आया ? मै तो आर्य स्त्री हूँ। यह भी सह लूंगी।' इसके वाद द्रौपदी ने द्रोण और भीष्म की तरफ उन्मुख होकर कहा'महापुरुषो | और सब तो खैर ठीक है, मगर मै आप से पूछती हूँ-युधिष्ठिर जब जुए मे स्वय अपने को हार चुके तो वे मुझे दांव पर किस प्रकार चढ़ा सकते है ?