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(जैन पाठावली
देर में वे नाशवान् शरीर को त्याग कर, जन्म मरण के चक्र से छूटकर, मुक्ति धाम मे पहुँचे । अव वहा प्राणहीन जड पिंजर मांत्र पड़ा रह गया।
इसी समय सुनार के घर एक लकडहारा आया। उसने अपने सिर का गट्ठर जमीन पर पटका । उसकी जोर की आवाज से मर्गाने भयभीत होकर चिरक दिया। सोने के सभी जो उसके मल मे निकल आये । यह देख सुनार के विस्मय का पार नहीं रहा । अपनी मूर्खता के लिए वह बहुत पछताने लगा। बिना कारण एक निर्दोष और सत्यवादी मुनि की हत्या के पाप के कारण वह बहुत दुखी हुआ।
महामुनि मेतार्य की दया और क्षमा धन्य है !
श्रेणिक
नप प्रसेनजित पत्र यह, श्रेणिक चतर कुमार | राजगृही के नृप हुए, नन्दा के भरतार ।। सती चेलना-सग से, वने वीर के साज ।
करके जिन-सेवा प्रथम होगे अब जिनराज ||
अभयकुमार की कथा तुम पढ़ चुके हो । जैसा बाग वैसा वेटा' यह कहावत अपने यहाँ पुराने समय से चली आ