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(जन पाठावली
___मुनि ने सुनार को जन साधु का आचार-विचार समझाया और कहा-'मैने तुम्हारे जौ के दाने नहीं लिये।' लेकिन सुनार को विश्वास नही हुआ। मुनि सोचने लगे-'मै कह दूंगा कि मुर्गा जौ चुग गया है तो यह मुर्गे को मार डालेगा । मेरा कुछ भी हो, मगर यह बात नही कहूँगा।' मुनिराज को मौन धारण किये देखकर सुनार का बहम और बढ गया। अब उसे गुस्सा भी चढ़ आया। वह गुस्से में पागल होकर मुनि को मारने लगा।
कसौटी तो सोने की ही होती है न? मगर यहाँ तो जड । सोने के लिये सजीव सोने की कसौटी हो रही थी। कैसी भयङ्कर कसौटी।
सुनार ने सोचा-'यह बावा इतने से नही मानेगा। इसे खूब मजा चखाना होगा, तब इसकी अक्ल ठिकाने आएगी। मार के आगे भूत भागते है, यह तो आदमी ही है। बेचारे
सुनार को पता नहीं था कि यह कोई भगोडा भिखारी नही है; , यह दिव्य विभूति है ? सुनार की अक्ल चक्कर में पड़ गई थी।
___ गुस्से में आकर सुनार ने मुनि के मस्तक के चारो तरफ चमड़े की गीली पट्टी लपेट दी और लोहे की कील से बल चढा कर खूब कस दी । मुनि को धूप मे खडा कर दिया । सूरज की धूप से जैसे-जैसे चमडे की पट्टी सूखती गई, वैसे ही वैसे वह मिकुडती गई। मुनि का मस्तक भिचने लगा। नीचे जलती हुई रेती से मुनि के पैरो में छाले पड़ने लगे। -