Book Title: Jain Pathavali Part 03
Author(s): Trilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
Publisher: Tilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar

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Page 179
________________ तृतीय भाग) (१७७ .मी उसकी कारीगरी पर मुग्ध था। इस समय सुनार अपने घर - की. दहलान मे बैठा, राजा के लिए सोने के जो बना न्हा था । मनिराज को देखकर उसने वन्दना की और श्रद्धा के साथ आमत्रण दिया। फिर वह अपना काम छोडकर मुनि को वहराने के लिए घर मे आहार लेने चला गया । इतने में ही वहाँ एक मुर्गा आया । सोने के जो को असली जो समझकर वह मुनि के देखते-देखते निगल गया और 'कुकडू कुँ' करके उड गया। सुनार द्वारा दिये हुए आहार को लेकर मुनिराज लौट ___ आये । मनि के वैराग्य की सराहना करता हआ मनार अपनी दुकान में गया । वह बैठने को तैयार हुआ ही था कि उसकी नजर गढ़ कर रवखे हुए सोने के जौ की तरफ गई। पर वहाँ एक भी जो दिखाई न दिया। जो गये तो गये कहाँ ? उसने चारो ओर तलाश की। कही नजर नही आये। कही इधर-उधर तो नही रख दिये हैं ? यह सोचकर उसने सारी दुकान ढूंढ ली। फिर भी कही जो दिखाई न दिये। तो फिर जो कहाँ चले गये? अभी-अभी मुनि को आहार देकर आया हूँ। इतनी-सी देर मे कोन ले गया ? मन ही मन सोचकर वह बडबडाने लगा-'अवश्य यह उस मुनि की ही करामत है। वह वैरागी नही कोई ठग होना चाहिए। उसी ने जौ चुराये है।' यह सोचकर सुनार ने मुनि का पीछा किया। इतने मे हा मुनिराज पास के दूसरे घर से आहार लेकर निकले । सुनार उन्हें फिर अपने घर बुला लाया और गाली गलौज करके अपने जो मांगे। ---

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