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तृतीय भाग)
(१७५ कर सुभद्रा की आँखो से आसुओ की धारा बहने लगी। थोडी । देर मे उसकी हिचकी बंध गई। .
धन्ना ने कारण पूछा। सुभद्रा ने शालिभद्र की बात सुनाई। तब धन्ना सेठ ने कहा-त्याग के मार्ग पर जाना अच्छा ही है। इसके लिये रोना शोभा नहीं देता। लेकिन शालिभद्र को जव त्याग करना है तो एक-एक पत्नी का त्याग क्यो कर रहा है?
सुभद्रा-नाथ । कहना सरल होता है, करना कठिन होता है।
बस, धन्ना को तो निमित्त चाहिए था। वह निमित्त अब मिल गया। उसने कहा--'अच्छा लो, मैने आठो का त्याग किया ।'
सुभद्रा ने बहुत आजीजी की, मगर धन्ना का कथन पत्थर की लकीर था। वह नहीं बदला ।
धन्ना ने दीक्षा ली । सुभद्रा ने सोचा-अब मै ससार में रहकर क्या करूँगी ? वह भी साध्वी बनी । इसी प्रकार आठो ने दीक्षा ले ली।
दीक्षा के लिए तैयार होते समय धन्ना ने शालिभद्र से कहा-'चलना हो तो मेरे साथ चलो। पल भर का भी भरोसा नहीं है और तुम बत्तीस दिनो का भरोसा किये बैठे हो ।'
शालिभद्र भी सुपात्र थे । बहिनोई का वचन सुनकर वह भा चल दिये। इसे कहते हैं-साले-बहनोई का सच्चा सबध