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(जैन पाठावली रास्ते मे जाते हुए तीन भिखारी देखे । उनके चेहरे उसके भाईयो जैसे थे। धन्ना ने उन्हे बुलाया। वे आये और धन्ना का ऐश्वर्य
देखकर चकित रह गये। उन्होने माफी मांग कर कहा-भया, , पिताजी परलोक सिधार गये। धन खत्म हो गया। हमारी यह दशा हुई हैं। यह कर उन्होने अपने दुःख की कहानी कह सुनाई।
धन्ना सज्जन था । कुल्हाडा चन्दन को काटता है पर चदन तो अपनी सुवास ही फैलाता है और कुल्हाडे को भी सुगधित करता है। अपने भाइयो के दुख का हाल सुनकर धन्ना की आँखो मे ऑसू आ गये। उसने कहा-'भाइयो । आप लोग यही ररिए । यह आपका ही घर है।' इस प्रकार आश्वासन देकर उन्हे आपने पास रख लिया और सुखी कर दिया। धना की उदार भावना धन्य है।
धन्ना के गुणो की सुगन्ध दूर-दूर तक फैल गई धन्ना ने दुनिया का सुख, कीर्ति और सद्गुण प्राप्त किये। मगर उसे इससे भी आगे बढना था। जव मल कारण तयार होता है तो निमित्त कारण भी मिल जाते है ।
आज सुभद्रा धन्ना को नहला रही है। नहलाते-नहलाते उसे अपने भाई की याद आ गई। पिता गोभद्र सेठ और माता भद्रा का पुत्र शालिभद्र ही सुभद्रा का सगा भाई था । शालिभद्र दीक्षा लेने के लिये तैयार हुए थे। उनके वत्तीस स्त्रिया थी। प्रतिदिन एक-एक का त्याग करते जाते थे। बहिन को भाई बडा प्यारा होता है। वही भाई अव त्यागी बन रहा है। यह सोच