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वीर धन्ना
(२)
उसी नगर मे गोभद्र नामक एक सेठ रहते थे। उन्होने एक फरियाद की । आरोपी काणा था।
काणा उनके गले पड गया था। सेठ करोडपति थे । काणे ने ठग-विद्या चलाई । सेठ से कुछ रकम हडपने की तरकीब रची । एक बार वह सेठ के पास गया और कहने लगा सेठजी, अपनी हजार मोहरे ले लीजिए और मेरी आँख मुझे दे दीजिए, जो मैंने आपके यहाँ गिरवी रक्खी थी।
सेठ ने कहा-कही आँख भी गिरवी रक्खी जाती है ?' . पर काणे को तो गले ही पडना था। उसने झगडना शुरू कर दिया। सेठ झगडा झंझट पसन्द नही करते थे। उन्होने उसे दस हजार मोहरे देकर अपना पिंड छुडाया। परन्तु काणे की वन आई। उसेने सेठ को परख लिया। उसने और ज्यादा रकम वसूल करने के लिए ठंगाई आरम्भ की। वह बोला-'मुझे तो अपनी आँख चाहिए । में मोहरे लेकर क्या करूँगा?' इतना कहकर वह रोने लगा। चीखे मारने लगा। लोगो का झुण्ड इकट्ठा हो गया।
सेठजी ने सोचा-यह काणा ऐसे माननेवाला नहीं है। अतएव उन्होने राजा के पास जाकर फरियाद की।