________________
तृतीय भाग)
(१७१
चाहिए।' सच्ची चतुराई इसी को कहते हैं। मगर धन्ना का जाना पिता को पसन्द नही था । पिता को उसने बहुत समझाया। आखिर पिताजी भी राजी हो गये। पिता को विश्वास था कि धन्ना जहाँ कहाँ भी जायगा, अपने लिए मार्ग निकाल लेगा। भाइयो ने उसे जायदाद में से कोई हिस्सा नही दिया। धना ने मांग भी नही की। उसे उसको आवश्यकता ही नहीं थी।
धन्ना चल दिया। चलते-चलते राजगृह नगरी तक आ नहुंचा। जब वह नगरी में घुसने लगा तो उसने सुना कि राजा का हाथी पागल हो गया है। राजा ने घोषणा की है कि जो पुरुष हाथी को काबू में करेगा, उसकी कद्र की जायगी। धन्ना ने अपनी चतुराइ काम मे ली और थोडे साहस से काम लिया । वह हिम्मत के साथ हाथी के पास गया और स्नेह प्रकट किया । हाथी उसके स्नेह के वश में हो गया। यह देखकर राजा धन्ना पर प्रसन्न हो गया। नगर के लोगो ने उसका नाम पूछा और धन्यवाद दिया। धन्ना एकदम ही सारी राजगृह नगरी में प्रसिद्ध हो गया। राजा ने उसे बहुत सा धन दिया ! योग्य समझकर अपनी कन्या भी व्याह दी। इस प्रकार धन्ना राजगृह मे मौज करने लगा। राज्य में और प्रजा में उसका आदर बढने लगा।