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तृतीय भागः)
ईर्षाल लडको ने कहा-भेजो न अपने धन्ना को, पता 'चल जायगा कि कैसा व्यापार करना जानता है ।
.पिता ने धन्ना से कहा-अच्छा, बेटा तू ही जा।
धन्ना ने पिता की आज्ञा स्वीकार की। साथ मे रकम लेकर वह किराना खरीदने चल दिया ।
व्यापारी इकट्ठे हुए । ऐसा चढाव-उतार हुआ कि न पूछो वात | केशर, कस्तूरी, कपूर आदि तो बिक गया, रह गया खारी मिट्टी का एक ढेर-सा। व्यापारियो ने उम ढेर को खारी मिट्टी का ही ढेर समझा। किसी ने उसकी तरफ देखा तक नहीं और सब चले गये । धन्ना ने सोचा-'इस जहाज का मालिक बड़ा व्यापारी था। कीमती किराना लाया था। वह इतनी कीमती चीजो के साथ क्या दूर देश से मिट्टी लाया ? जान पडता है, यह भी कोई कीमती चीज होगी?' यह सोचकर उसने मिट्टो को चुटकी में लिया। भाग्य से उसे एक नई बात सूझ आई। वही लोहे के टुकडे पडे थे । उसने दोनो चीजो को साथ मे गर्भ किया तो सोना बन गया। फिर क्या पूछना था । धन्ना ने सारा ढेर खरीद लिया और घर ले आया ।
ईर्षाखोर राह देखते बैठे थे। ईर्षा कमजोर मनुष्य की निशानी है । जो दूसरे के गुणो की बरावरी नही कर सकता , वह ईर्षा करके सतोष मान लेता है। ईर्षाल पुरुष दूसरे के अव... गुण देखता है। धन्ना के भाई, ऐसे ही थे। मिट्टी के उस ढेर को देखकर वे कहने लगे-'पिताजी, देखिए। आपका धन्ना,