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तृतीय भाग )
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हस्तिशीर्षी नामक विशाल नगर था । वहाँ के राजा का
नाम अदीनशत्रु था । उसके धारिणी नामक रानी थी । रानी की कूंख से एक पुत्र उत्पन्न हुआ । उसके लम्बे और मजबूत बाहु थे । इस कारण उसका नाम पडा-सुबाहुकुमार ।
"सुवाहुकुमार राजा का एकलौता बेटा था । लालन-पालन मे राजा ने कोर-कसर नही की । पढाया-लिखाया और होशियार किया ।
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कुमार जवान हो गया । शरीर जैसा स्वस्थ वैसा ही सुन्दर था । माता-पिता ने उसकी राय लेकर विवाह कर दिया । वह पुष्पचूला आदि पाँच सौ पत्नियो का स्वामी बना। उसे पाँच सौ. महल दिये गये । एक-एक महल मे एक-एक पत्नी रहती थी । सुवाहुकुमार की सभी पत्नियाँ उसे खूब चाहती थी ।
इस तरह दिन पर दिन बीतने लगे । एक दिन अपनी पाँच सौ पत्नियो के साथ सुबाहुकुमार वन विहार के लिये निकला । वहाँ सरोवर मे छिप कर ढूंढने का खेल चल रहा था । उसी समय सुबाहुकुमार की नजर नगर के दरवाजे की तरफ गई ।
चीटियो की तरह मनुष्यों का ताता लगा था। सभी लोग जल्दी-जल्दी वन की ओर बढ़े चले आ रहे थे । सुबाहुकुमार सोचने लगा-इतने सारे लोग कहाँ जा रहे होंगे ? इतने में ही सामने से दोडकर आते हुए दूत ने हाँफते - हाँफते कहा
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'युवराजजी ! भगवान् महावीर पधारे है । महाराज, महारानीजी, मत्रीजी, 'महाजन और प्रजाजन सभी भगवान् के
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