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तृतीय भाग)
(१५१ माता की प्रेरणा और आशीष से सुबाहकुमार मे अद्भुत शक्ति आ गई ।
सुबाहकुमार की दीक्षा की तैयारी होने लगी। प्रजा ने हृदय से सहकार दिया । बड़े ठाट-बाट के साथ सुबाहकुमार सब के साथ भगवान् महावीर के पास पहुंचे ।
___ सुवाहुकुमार ने पाँच महाव्रतो, पांच समितियो और तोन गुप्तियो का पालन करने की प्रतिज्ञा ली।
सुवाहुकुमार ने सिंह की तरह ही प्रतिज्ञा ली और सिह की तरह ही उसका पालन किया। पांच सौ रमणियो और राजपाट का त्याग करने वाले सुबहुकुमार धन्य हैं ।
टिप्पण-उस युग मे राजा और श्रीमन्त लोग अनेक स्त्रियो को व्याहते थे । उस युग में स्त्रियो की संख्या अधिक होगी या प्रजा में अधिक पुत्रोत्पत्ति की आवश्यकता होगी। धार्मिक मान्यता भी उस समय ऐसी थी कि
अपुत्रस्य गति स्ति, स्वर्गो नैव च नैव च ।
अर्थ-पुत्ररहित को सद्गति नही होती और स्वर्ग तो मिलता ही नही। यह झूठी मान्यता भी भगवान् महावीर ने मिटा दी । अत अब 'एक पत्नीव्रत' का ही महत्त्व है।